नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून के लिए अधिसूचना जारी कर दी है । इसी के साथ संशोधित नागरिकता कानून आज से पूरे देश में प्रभावी हो गया है ।
बता दें कि इस कानून के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी ।
कानून के मुताबिक इन छह समुदायों के शरणार्थियों को पांच साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दी जाएगी। अभी तक यह समयसीमा 11 साल की थी । कानून के मुताबिक ऐसे शरणार्थियों को गैर-कानून प्रवासी के रूप में पाए जाने पर लगाए गए मुकदमों से भी माफी दी जाएगी ।
कानून के अनुसार, यह असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं । इसके साथ ही यह कानून बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन, 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन परमिट (आईएलपी) वाले इलाकों में भी लागू नहीं होगा। आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम में लागू है ।
क्यों हो रहा इसका विरोध ?
नागरिकता कानून में प्रावधान है कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे सिख, ईसाई, बौद्ध, हिन्दू, पारसी जिन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा हैं, उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान है। जबकि, इसमें मुसलमान को बाहर रखा गया है । प्रदर्शनकारियों का ऐतराज इसी बात को लेकर है कि नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को अलग क्यों रखा गया है ।