रायपुर, 16 अप्रैल 2020, 19.00देश मे कोरोना संक्रमण के चलते सभी उद्योग, व्यवसाय के साथ साथ शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद कर दिया गया है जो वाजिब भी है । ऐसे संकट के दौर में सोशल और फिजिकल डिस्टनसिंग ज़रूरी भी है । संस्थान बंद रहें, यह निर्देशित भी किया गया है किंतु इस बंद में भी अपने स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं काटने को भी कहा गया है ! क्या यह संभव है ? या सरकार ने स्कूलों या अन्य संस्थानों को तनख्वाह देने के लिये कोई आर्थिक सहयोग देने की घोषणा भी की है ?
देश मे कुछ बड़े संस्थानों के अलावा सैकड़ों नहीं, लाखों से अधिक ऐसी संस्थाने हैं जिनकी आमदनी, उन इकाइयों के लगातार चलने पर ही निर्भर है । अब बंद संस्थानें, एक तरफ तो बन्द व्यवसाय का नुकसान सह रही हैं, उस पर तनख्वाह देने का आदेश ! आमदनी नजे होने से खुद का घर जैसे तैसे चला रहे हैं, उस पर कर्मचारियों की तनख्वाह खान से निकले ?
यहाँ बात हो रही है शैक्षणिक संस्थानों की । यहाँ भी वही बात लागू होती है । स्कूलों में जितनी आवक है उतने ही खर्चे भी । विद्याथियों की फीस आएगी तभी सैलरी और अन्य खर्चे हो सकेंगे ।
सर्वविदित है कि स्कूलों में नया स्तर शुरू होने से पहले ही जनवरी/फरवरी से ही, अगले नये सत्र के खर्चे शुरू हो जाते हैं । केंद्रीय और राज्य स्तर के एफिलिएशन, रजिस्ट्रेशन का रिनिवल, लैब इक्विपमेंट, कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म, इंटरनेट वार्षिक रिनिवल, स्कूल बस एवं अन्य वाहन और भवन के बैंक लोन का मासिक शुल्क, इत्यादि अनेक बड़े खर्चे होते हैं, तब नया सत्र शुरू हो पाता है । राज्य सरकार ने 2 सालों से RTE की राशि भी स्कूलोँ को नहीं दी है । स्कूल non profit organization होती है इसलिए उनके पास कोई जमापूंजी नहीं होती ।
अधिकतर गार्जियन अपने बच्चों की फीस फाइनल एग्जाम के पहले, एकसाथ जमा करते हैं । सत्र 2019-20 की फीस अधिकतर गार्डियन्स ने अब तक नहीं दी है, सरकारी स्कूलों में वैसे भी फीस नहीं ली जाती, पर निजी स्कूलों में ?
प्राइवेट स्कूलोँ में ज़्यादातर बड़े घरों के बच्चे पढ़ते हैं । और उनके गार्जियन फीस देने में सक्षम होने के बावजूद, कुछ लोग मार्च या अप्रैल में ही, एकसाथ फीस देते हैं । वैसे, सरकार के आदेश अनुसार, सैलरी तो सभी को मिल रही है, फ़िर यह फीस पर रोक क्यों ?
लॉक डाउन के दौरान निजी स्कूलों ने ही सबसे पहले ऑनलाइन शिक्षा शुरू कर दी है ।
इसबार, एक तो मार्च/अप्रैल में बन्द और सरकारी आदेश के चलते फीस नहीं आयी, उस पर स्टाफ की सैलरी ! कैसे संभव है ? स्कूलों के पास कोई जमापूंजी तो होती नहीं है । केंद्र सरकार ने आदेश तो दे दिया पर स्कूलोँ को कोई इंतजाम या अन्य सहयोग तो दिया नहीं । बड़े स्कूल्स ही जब ये परेशानी झेल रहे हैं तो छोटे स्कूल्स तो बंद ही हो जाएंगे !
ऐसे अनेक बड़े नेतागण हैं जो खुद के स्कूल चला रहे हैं । क्या वे सरकार के आदेश से सहमत हैं ? इधर स्कूलों पर शिक्षा विभाग से लगातार registration and affiliation renewal में देरी से पैनल्टी भरने का दबाव भी बनाया जा रहा है । केंद्रीय और राज्य शिक्षण विभाग क्या सरकारों के आदेश से अनभिज्ञ हैं कि किसी पर आर्थिक बोझ ना डाला जाए !
वैसे भी, शिक्षा विभाग की रोज़ रोज़ के नये नये आदेशों और दबावों के चलते सभी स्कूल संचालक परेशान हैं और कभी कभी बेहद शर्मनाक स्थिति का सामना भी करते रहते हैं । इस ओर भी ध्यान देना अति आवश्यक है ।