लेकिन सोनिया गांधी और उनके वफादार चाहते हैं कि यह सहमति राहुल गांधी के नाम पर उसी तरह बन जाए जैसे कि एक जितेंद्र प्रसाद वाले अपवाद को छोड़कर पिछले कई दफा सोनिया गांधी के लिए बनती रही है…
बिहार चुनाव में कांग्रेस के अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन और उसके बाद पार्टी मे निष्क्रियता के बाद पार्टी में नेतृत्व को लेकर उठापटक है । खबर है कि अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और परिवार के वफादार कमलनाथ पर भरोसा जताते हुए उन्हें नए संकटमोचक की भूमिका सौंपी है ।
हाल ही में दिल्ली आकर कमलनाथ ने सोनिया से लंबी मुलाकात की । इसके बाद वह कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी मिले । सोनिया चाहती हैं कि कमलनाथ जल्द ही कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों दोबारा सौंपे जाने का रास्ता तैयार करें ।
अब तक अध्यक्ष पद पर किसी गैर-गांधी को बिठाने की जिद ठाने हुए राहुल गांधी ने भी अब अपना हठ छोड़ दिया है और वह दोबारा जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हैं ।
उधर पार्टी सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर सवाल उठाते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले गुट 23 नेताओं के साथ कुछ अन्य वरिष्ठ नेता जिन्होंने उक्त पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, वो भी अब पार्टी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं और वह सोनिया गांधी से मिलकर दो टूक बात करना चाहते हैं ।
इसी आशय पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सोनिया गांधी से हाल ही में मिले और उन्हें अन्य वरिष्ठ नेताओं की भावनाओं से अवगत कराते हुए सबके साथ बातचीत करने का सुझाव दिया ।
सूत्रों का कहना है कि इसी मुलाकात में सोनिया गांधी ने कमलनाथ को जिम्मेदारी दी है कि वह किसी भी तरह पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं मुख्यरूप से कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को अगले कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के नाम पर सर्वसम्मति बनाएं । इसके बाद कमलनाथ सोनिया के साथ हुई अपनी बातचीत को लेकर कांग्रेस के कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं से भी मिले ।
कांग्रेस में उंगलियां अशक्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर नहीं बल्कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली और तरीके पर उठ रही हैं । ये उंगलियां वो लोग उठा रहे हैं जिन्हें लंबे समय तक दस जनपथ का बेहद भरोसेमंद माना जाता रहा है और जिन्होंने यूपीए सरकार के पूरे दस साल सरकार और पार्टी के फैसलों को प्रभावित भी किया है । खबरें आ रही हैं कि जल्दी ही संभावित कांग्रेस संगठन के चुनावों में अध्यक्ष पर आम सहमति बनाने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं, लेकिन सोनिया गांधी और उनके वफादार चाहते हैं कि यह सहमति राहुल गांधी के नाम पर उसी तरह बन जाए जैसे कि एक जितेंद्र प्रसाद वाले अपवाद को छोड़कर पिछले कई दफा सोनिया गांधी के लिए बनती रही है । लेकिन राहुल के नाम पर कई वरिष्ठ नेता कई तरह के किंतु-परंतु लगा रहे हैं, जिससे सोनिया की परेशानी बढ़ गई है ।
सोनिया गांधी का संकट इसलिए भी और बढ़ गया है कि पिछले करीब बीस सालों से सोनिया के संकट मोचक माने जाने वाले अहमद पटेल भी अब इस दुनिया में नहीं हैं और फिलहाल सोनिया परिवार के पास ऐसा कोई सेनापति नहीं दिख रहा है, जो राहुल गांधी को बिना किसी विवाद के निर्बाध रूप से पार्टी की कमान सौंपे जाने का माहौल बना सके । इसीलिए सोनिया गांधी ने परिवार के पुराने वफादार और वरिष्ठ नेता कमलनाथ पर भरोसा जताया है ।
कांग्रेस के एक मुखर नेता ने कहा कि भीतर ही भीतर नाराजगी इस कदर बढ़ गई है कि मुमकिन है कि राहुल के खिलाफ भी कोई चुनाव में खड़ा हो सकता है और अगर राहुल गांधी ने अपनी किसी कठपुतली को थोपने की कोशिश की तो पार्टी में ऐसा घमासान होगा कि पार्टी टूट भी सकती है । सोनिया गांधी को यह आभास है इसीलिए उन्होंने कमलनाथ को आगे किया है ।
दिग्विजय सिंह :
दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के दूसरे दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खुलकर राहुल गांधी का समर्थन कर दिया है । दिग्विजय ने खुलकर बयान दिया कि वह चाहते हैं कि राहुल गांधी फिर से पार्टी अध्यक्ष बनें । दिग्विजय के करीबी सूत्रों का यह भी कहना है कि राजा साहब राहुल गांधी के साथ तो खुलकर हैं, लेकिन अगर राहुल की जगह किसी और को अध्यक्ष बनाने की बात की गई तो वह खुद भी अपना दावा पेश कर सकते हैं और फिर अगर चुनाव हुआ तो वह चुनाव भी लड़ सकते हैं । वह सिर्फ राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के सामने अपना दावा पेश नहीं करेंगे ।
अशोक गहलोत :
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एकसाथ कांग्रेस सरकार बनने के बाद बीजेपी ने खेल खेला और बहुत ही अल्पमत में बनी मध्यप्रदेश सरकार को मार्च माह में उखाड फेंका । बचे हुए छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट में से कांग्रेस को 70 सीट मिल चुकी हैं । इसलिए वहां तो कुछ विशेष नहीं किया जा सकता । पर राजस्थान में काँग्रेस का कार्यकाल पूरा होने में बढ़ा संशय है ।
युवा नेता सचिन पायलट ने पार्टी को बहुत संकट में डाला है । पर दिग्गज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से टक्कर लेना भी आसान नहीं है । इसी को ध्यान में रखकर अशोक गहलोत को राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी दी है । पर अभी तो पार्टी में भारी उथलपुथल मची हुई है । देखें आगे क्या होटे है ?
जबकि गुट 23 की तरफ से अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी के नाम पर भी सहमति नहीं बनती दिख रही है । इस समूह के कई नेता राहुल को लेकर संतुष्ट नहीं हैं । लेकिन वह किसी एक वैकल्पिक नाम को अभी तक आगे भी नहीं बढ़ा सके हैं । लेकिन दबे पांव पूर्व केंद्रीय मंत्री और गुट 23 के दूसरे वरिष्ठ सदस्य आनंद शर्मा का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए चलाया जा रहा है । तो दूसरी तरफ एक चर्चा यह भी है कि दस जनपथ परिवार, वफादारों और गुट 23 के बीच पुल बने कमलनाथ खुद को तटस्थ दिखाते हुए दोनों खेमों की स्वीकार्यता प्राप्त करने की कोशिश में हैं ।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का अपने अपने मित्र समूहों में बैठकों और मुलाकातों का दौर जारी है । राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के घर पर हुई ऐसी ही एक बैठक में यह सवाल भी उठा कि अगर मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद के लिए उनकी पसंद का कोई नाम पूछा तो किसका नाम लिया जाएगा । इस पर एक सुझाव मुकुल वासनिक के नाम का भी आया लेकिन अभी किसी नाम पर सहमति नहीं बन पाई है ।
गुट 23 के एक नेता के मुताबिक वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि कोई गैर-गांधी और वरिष्ठ कांग्रेसी पार्टी की कमान संभाले और अगर सोनिया गांधी को संतुष्ट करने के लिए प्रियंका गांधी को महासचिव से पदोन्नत करके उसी तरह उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है जैसे कि जयपुर अधिवेशन में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाया गया था । ताकि भविष्य में अगर सब कुछ ठीक रहा तो देर-सबेर प्रियंका के पद संभालने का रास्ता खुला रहे ।
वहीं कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जिस हालात से कांग्रेस गुजर रही है, उसमें उसे किसी ऐसे नेता के नेतृत्व की जरूरत है जो निष्पक्ष, निष्कलंक और निष्कपट हो । जिस पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी भी भरोसा कर सकें और पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता जिन्होंने नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं वे भी भरोसा कर सकें । क्योंकि परस्पर विश्वास का संकट इतना गहरा हो गया है कि किसी भी कमजोर और किसी एक तरफ झुके रहने वाले व्यक्ति के हाथों में अगर नेतृत्व जाता है तो पार्टी जहां है वहां से भी नीचे जा सकती है ।
पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर जिस तरह उंगलियां उठीं और फिर उंगलियां उठाने वालों पर दूसरे नेता हमलावर हो गए उससे लगता है कि कांग्रेस भीतर ही भीतर जबरदस्त घमासान से जूझ रही है । रही सही कसर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब के उस अंश ने पूरी कर दी, जिसमें ओबामा ने राहुल गांधी को लेकर अपनी राय व्यक्त की है । सवाल है कि क्या राहुल गांधी असफल हो गए या उन्हें असफल किया गया । टीम राहुल में शामिल कांग्रेस के एक युवा नेता का कहना है कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जानबूझकर राहुल गांधी को विफल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।
इस युवा नेता के मुताबिक पार्टी की दुर्दशा के लिए जो बड़े नेता जिम्मेदार हैं वही आज राहुल गांधी पर सवाल उठा रहे हैं । जबकि सच्चाई यह है कि इस समय मोदी सरकार के खिलाफ अगर सबसे ज्यादा आक्रामक तेवर किसी नेता के हैं तो वह राहुल गांधी के ही हैं । जबकि बाकी सारे नेता खामोश हो गए हैं या कर दिए गए हैं और बजाय मोदी सरकार पर सवाल उठाने या हमला करने के अपने नेतृत्व और राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं, इससे समझा जा सकता है कि इस सबके पीछे कौन है ।