कोलकाता, 30 दिसम्बर 2020, 15.10 hrs : पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट इस बार वजूद बचाने की कोशिश ने औपचारिक रूप से गठबंधन करने का फैसला किया है । इसका एलान कुछ रोज पहले हुआ ।
इसके पहले भी इन दोनों ने आपसी तालमेल से चुनाव लड़ा था । लेकिन समय रहते पूरे गठबंधन का एलान पहली बार हुआ है । क्या इससे हाशिये पर पहुंच गए इन दलों की तकदीर संवरेगी ? राज्य में जो सियासी रूझान हैं, उन्हें देखते हुए इसकी उम्मीद करना मुश्किल लगता है । 2016 के विधान सभा चुनाव में दोनों के तालमेल के बावजूद लेफ्ट को नुकसान ही उठाना पड़ा था ।
बीते साल हुए लोकसभा चुनावों में स्थानीय स्तर पर अनौपचारिक तालमेल के बावजूद कांग्रेस छह से घट कर दो सीटों पर आ गई, वहीं कभी अपने गढ़ रहे इस राज्य में लेफ्ट का खाता तक नहीं खुल सका । जाहिर है, सत्ता के दावेदार के तौर पर उभरती भाजपा और सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की टक्कर में इन दोनों के लिए वजूद बचाने का संकट खड़ा है ।
मुमकिन है कि गठबंधन की घोषणा के बावजूद जब सीटों के बंटवारे का असल सवाल आएगा, तब उस मुद्दे पर पेच फंसे । कांग्रेस पहले ही ज्यादा सीटों पर लड़ने का संकेत दे रही है । उधर माकपा का कहना है कि सीटों का बंटवारा दोनों दलों की ताकत और जीतने की क्षमता के आकलन के आधार पर किया जाना चाहिए ।
कांग्रेस खेमे से पार्टी के नेता अधीर चौधरी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की मांग उठाई गई है । गौरतलब है कि 2011 के बाद हुए तमाम चुनावों में कांग्रेस और लेफ्ट अपने वजूद की रक्षा के लिए ही जूझते दिखे हैं । हर बार उनके वोट कम होते गए हैं। बीते लोकसभा चुनावों में तो भाजपा ने इन दोनों दलों के वोटों में जबरदस्त सेंध लगाई थी । इसीलिए कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के लिए अगला चुनाव बेहद अहम है । इसीलिए यह यह देखना दिलचस्प होगा कि एक बार फिर हाथ मिलाने से क्या इन दलों की किस्मत भी बदलती है । यह आसान नहीं है । लेकिन यह जरूर है कि इस गठबंधन के मैदान में होने से ममता बनर्जी से नाराज सेकुलर वोटरों के लिए एक और विकल्प सामने होगा । इसी गणना के आधार पर यह मुमकिन है कि ममता बनर्जी इस गठबंधन के प्रति नरम रुख अपनाएं । ममता की कोशिश अपने विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण को रोकना है । इसमें कांग्रेस-लेफ्ट का गंठबंधन काम आ सकता है ।