विश्व पर्यावरण दिवस पर, पहाड़ों के अंधाधुंध दोहन पर पर्यावरणविदों ने ऑनलाइन जताई चिंता, पहाड़ नीति की वकालत

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रायपुर, 05 जून 2020, 21.45 hrs : “विश्व पर्यावरण दिवस” पर “पहाड़ बचाओ अभियान” के तहत एक बेबनार का आयोजन किया गया । इस वेबनार में विशेषज्ञों ने पहाड़ों के अवैज्ञानिक खनन पर चिंता जताते हुए प्रदेश सरकार से पहाड़ नीति बनाने की मांग की है । विशेषज्ञों की राय के आधार पर पहाड़ों पर एक रिपोर्ट तैयार करके मुख्यमंत्री को सौंपा जाएगा ।

वेब के जरिए हुई इस परिचर्चा में बोलते हुए छत्तीसगढ़ के पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी ने बैक टू रूट्स की बात करते हुए कहा कि विकास की अवधारणाओं में स्थानीय समुदाय की भागीदारी और जरुरतों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए । चतुर्वेदी ने कहा कि मौजूदा अवधारणा स्थानीय परंपराओं और संस्कृति से दूर ले जा रही है । उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार की ग्राम सुराजी योजना यानि नरवा, गरुवा, घुरवा और बारी को केंद्र में रखखर पहाड़ संरक्षण किया जा सकता है ।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कृषि एवं ग्रामीण विकास सलाहकार प्रदीप शर्मा ने पहाडों के अवैज्ञानिक दोहन को विनाशकारी बताया । प्रदीप शर्मा ने कहा कि धरती की संरचना केवल मनुष्य के लिए नहीं है बल्कि सभी जीवों और जड़ों के लिए है । उन्होंने कहा कि पहाड़ पोषण और सुरक्षा देते हैं । इसे बचाना सबसे ज़्यादा ज़रुरी है ।

देश के जाने माने पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंधोपाध्याय ने कहा कि देश की विकास नीति ने पहाड़ के पारिस्थितिकी को बिगाड़ दिया है, जिसका दुष्प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रुप में सामने आ रहा है ।

बंधोपाध्याय ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित कर सतत पर्वतीय विकास पर ज़ोर देने हेतु 2002 और 2010 में अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था । उन्होंने कहा कि पहाड़ वैश्विक जलवायु परिवर्तन एवं न्याय के लिए अति संवेदनशील है । बंधोपाध्याय ने पर्वतीय रिसर्च पर ज़ोर देते हुए राज्य में पहाड़ नीति बनाने की मांग की ।

इस परिचर्चा में शामिल होते हुए भू-गर्भशास्त्री प्रो. नीनाद बोधनकर ने कहा कि अगर देश में हिमालय जैसा पहाड़ नहीं होता तो भारत भी मंगोलिया की तरह रेगिस्तान होता, जहां बादल आते लेकिन बारिश नहीं होती । उन्होंने कहा कि हिमालय से निकलने वाली नदियां ही हमारी सभ्यता के लिए वरदान साबित हुई ।

परिचर्चा में हिमालय पहाड़ श्रृंखला के संरक्षण को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रघु तिवारी ने भी शिरकत की । तिवारी ने कहा कि विकास की अवधारणा की समीक्षा करने को कहा । उन्होंने पहाड़ों को बचाने की आवाज़ राष्ट्रीय स्तर पर उठानी होगी । उन्होंने कहा कि पहाड़ के अवैज्ञानिक दोहन का सिर्फ मौसम पर असर नहीं पड़ता बल्कि स्थानीय खेती, संस्कृति, ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी नष्ट हो जाती है । रघु तिवारी ने माउंटेन इकोसिस्टम को बचाए रखने के लिए एक बेहतर योजना बनाने पर ज़ोर दिया । जिसमें केंद्र,राज्य और स्थानीय स्तर पर समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित हो । तिवारी ने कहा कि पहाड़ आधारित अर्थव्यवस्था का विकास करने से गरीबी और पलायन पर रोक लग सकती है ।

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर संकेत ठाकुर ने कहा कि पहाड़ों और जंगलों की वजह से ही वर्षा आधारित खेती होती है । क्योंकि पहाड़ और जंगल कम दबाव का क्षेत्र बनाते हैं जिससे बारिश होती है । ठाकुर ने कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती इन पहाड़ों पर ही निर्भर है । संकेत ठाकुर ने सरगुजा में कोयले के उत्खनन से पहाड़ों और जंगलों के नष्ट होने पर चिंता जताई है । उन्होंने कहा कि इसका विपरीत असर वहां की खेती पर पड़ेगा ।

इस परिचर्चा में त्रिभुवन सिंह ने कहा कि समुदाय के सहभागिता से पहाड़ को पुर्नजीवित किया जा सकता है । उन्होंने सरगुजा के दरिमा स्थित मड़वा पहाड़ का उदाहरण सामने रखा । परिर्चा में कार्पोरेट द्वारा खदानों के अवैज्ञानिक उत्खनन पर भी चिंता जताई गई । परिचर्चा में शिक्षक नेता मनोज वर्मा ने भी अपने विचार ज़ाहिर किये ।

वेबनार का आयोजन शिक्षा कुटीर सोसाइटी ने किया था । परिचर्चा में आए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर एक रिपोर्ट बनाकर जल्द ही मुख्यमंत्री को दिया जाएगा ।

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