कलियुग में यदि आम जनमानस ने किसी को भगवान के रूप में पूजा तो इसमें सिर्फ़ ‘अवधूत भगवान राम’ का नाम ही सर्वोपरि है । उनके जीवित रहते ही उन्हें जहां ‘कलियुग के भगवान’ का सम्मान मिला वहीं देहावसान के बाद तो वे अनुयायियों के बीच प्रथम पूज्य हो गए ।
सात वर्ष की अल्पायु में ही सन्यास धारण कर सांसारिक मोह-माया से विमुख होने वाले अवधूत भगवान राम 14 वर्ष की उम्र में ही अवधूत की उपाधि से विभूषित किये गए । उम्र के साथ ही दलितों, वंचितों के सेवा के ज़ज़्बे से वशीभूत हो उन्होंने 21 सितंबर, 1961 को मंडुआडीह रेलवे स्टेशन के समीप सुलेमान का बगीचा में श्री सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की । बाद में समूह का मुख्य भवन समाज चिंतकों के सहयोग से पड़ाव (वाराणसी) में बना । इस भवन की नींव की पहली ईंट दलित जाति के रामलखन से रखवाई गई ।
अवधूत भगवान राम ने श्री सर्वेश्वरी समूह के अलावा भी बाबा भगवान राम ट्रस्ट एवं अघोर परिषद ट्रस्ट की स्थापना की । तीनों ट्रस्टों के माध्यम से वनवासियों, आदिवासियों एवं कुष्ठ रोगियों के साथ ही समाज में हाशिये पर रहे लोगों की सेवा को ही आश्रम से जुड़े लोगों के धर्म-कर्म में समाहित कर दिया गया । स्वंय भगवान अवधूत राम एवं ट्रस्टों से जुड़े अनुयायी वंचितों, रोगी की सेवा के जज़्बे का सागर मन में समेटे एक के बाद एक कर देश के विभिन्न राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लगभग सौ शाखाओं की स्थापना की ।इन शाखाओं में वनवासियों, आदिवासियों, वंचितों के साथ ही कुष्ठ रोगियों की तन्मयता पूर्वक सेवा कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का सफल प्रयास किया गया । इसके साथ ही पश्चिमी देशों के उन कुत्सित प्रयासों को भी विफल किया गया जिसके तहत वंचितों को प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था ।
1970 के दशक में इन आश्रमों को मुख्य रूप से ग्रामीण अंचलों व जंगलों में ही बनाया गया । इनमें वनवासी व ग्रामीण बच्चों को रखकर उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, वस्त्र के साथ ही उन्हें सामाजिक सरोकारों का भी पाठ पढ़ाया गया ।
छत्तीसगढ़ के वामदेव नगरगम्हरिया, जनसेवा अभेदाश्रम नारायणपुर, अम्बिकापुर, रायगढ़, खरसिया, बिलासपुर, बालको, कोरबा, जगदलपुर, राजनांदगांव व बगीचा में शाखायें खुलीं ।
झारखंड के गुमला, घाघरा, सिमडेगा, रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, डाल्टेनगंज, नगर उतारी में आश्रम क्रियाशील हैं । वहीं बिहार के सासाराम, देहरी, बख्तियारपुर, छत्तीसगढ़ के गुरुदेव घर ब्रह्मनिष्ठालय सोगड़ा समेत उत्तरप्रदेश के तमाम वनवासी क्षेत्रों में सौ से अधिक शाखायें वंचितों, दलितों की सेवा में तल्लीन है ।
महानिर्वाण दिवस पर कल 29 नवंबर को विविध आयोजन :
अघोरेश्वर भगवान राम के महानिर्वाण दिवस पर कल 29 नवंबर को अघोरेश्वर महाविभूति स्थल (गंगातट) पड़ाव पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं । प्रातः सफाई व श्रमदान के पश्चात गुरुपद बाबा सम्भव राम जी द्वारा अघोरेश्वर भगवान राम की समाधि का पूजन, आरती के बाद सफलयोनि का पथ होगा । ततपश्चात कतारबद्ध श्रद्धालु समाधि का दर्शन-पूजन कर प्रसाद ग्रहण करेंगे । सन्ध्या 4.30 बजे गोष्ठी में गुरुपद बाबा संभव रामजी का आशीर्वचन होगा । गोष्ठी समापन के पश्चात अखण्ड संकीर्तन प्रारंभ होगा ।
अवधूत गुरुपद बाबा संभव राम जी :
वर्तमान में आश्रम एवं सभी ट्रस्टों के अध्यक्ष का पद अवधूत गुरुपद बाबा संभव रामजी सुशोभित कर रहे हैं । नरसिंहगढ़ स्टेट के राजघराने में जन्मे, सबसे छोटे राजकुमार यशोवर्धन सिंह ने 1982 में अवधूत भगवान रामजी से दीक्षा ली । ततपश्चात इनका “संभव राम” नामकरण किया गया । सेवाभाव से ओतप्रोत बाबा सम्भव रामजी को भी अवधूत और गुरुपद की उपाधि मिली
अवधूत भगवान रामजी के देहावसान के बाद ये पीठाधीश्वर बनाये गए । इनकी माता भी श्री सर्वेश्वरी समूह की संस्थापक सदस्य रहीं ।