निकाय चुनावों में काँग्रेस ने सभी 10 निगमों के अपने महापौर तय कर लिए हैं । पर अभी ये नाम बन्द मुट्ठी की तरह हैं । सभी नाम तय दिन 6 जनवरी को ही पता चलेंगे । सस्पेंस जारी है । महापौर का चुनाव दोनों ही दलों के लिए अब एक चुनौती हो गया है ।
यहाँ, बीजेपी ने विधायक बृजमोहन को पर्यवेक्षक बना कर खेला है बड़ा दाँव जिससे काँग्रेस के पसीने छूट सकते हैं । किसी भी चुनाव में बिगड़ी स्तिथि को अपनी पार्टी के पक्ष में करने में बृजमोहन माहिर है । ऐसा कई बार हो भी चुका है, विशेषकर रायपुर के ही एक निगम चुनाव में जब काँग्रेस के हाथ से, (सिर्फ एक मत की कमी थी), क्रॉस वोटिंग के चलते, रायपुर निगम निकल गया था ।
इसबार रायपुर के 70 वार्ड में से काँग्रेस के 34 पार्षद जीते हैं, बीजेपी के 29 और 7 निर्दलीय हैं । महापौर बनाने के लिए 36 पार्षद चाहिए । काँग्रेस को अपना महापौर बनाने के लिए सिर्फ़ 2 निर्दलीयों का समर्थन चाहिए । ऐसे में बृजमोहन की गणित और रणनीति या कूटनीति के अनुसार, वो इन सातों निर्दलीयों के अलावा, यदि ज़रूरत पड़ी तो काँग्रेस के कुछ पार्षदों से क्रॉस वोटिंग कराने की क्षमता रखते हैं । काँग्रेस को अब बड़ी ही सावधानी से, 2 निर्दलीयों को साधने के साथ ही अपने 34 पार्षदों पर भी कड़ी नज़र रखनी होगी ।
वैसे देखा जाए तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से सामना है बृजमोहन का । दोना ही अपनी अपनी पार्टी के ठोस स्तम्भ हैं और दोनों किसी से कम नहीं । अब तक के समीकरण के हिसाब से तो काँग्रेस का पलड़ा ही भारी है, पर राजनीति में ऊँट किस करवट बैठता है ये कोई नहीं जानता ।
अभी तक काँग्रेस के जिन 4/5 पार्षदों के नाम चल रहे हैं, पर ये भी हो सकता है कि कोई नया नाम ही उभर कर निकले । क्या कोई ओबीसी बन सकता है रायपुर का महापौर ? चर्चा तो यह भी चल रही है !
रायपुर के अलावा अन्य 9 निगमों में भी महापौर पद के 2 से 4 दावेदारों के नाम चल रहे हैं । देखे, 6 जनवरी को ही सस्पेंस स्पष्ट होगा ।