“एक अनार, सौ बीमार”, इस कहावत का असर, छत्तीसगढ़ नगरीय निकाय चुनावों में हो सकता है बड़ा बदलाव ।
लगता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश काँग्रेस ने अब मन बना लिया है कि 2019 के दिसंबर में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में, महापौर के डायरेक्ट चुनाव में संशोधन करते हुए, महापौर का चुनाव, जीते हुए पार्षद ही करेंगे ।
इसके तहत 15 अक्टूबर तक विचार मंथन कर के महापौर के चुनाव पार्षदों द्वारा किये जाने पर मुहर लग सकती है ।
छत्तीसगढ़ में दिसंबर में होने वाले नगरीय चुनाव में आज कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों में स्तिथि यह है कि वर्तमान पार्षदों और महापौर के अलावा अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं ने टिकट की दावेदारी ज़ोरदार तरीके से कर दी । इन दावेदारियों को रोकने का सरल तरीका यही निकला की महापौर का चुनाव, जीते हुए पार्षदों द्वारा करवाया जाए ।
महापौर का चुनाव पार्षदों द्वारा किये जाने का नियम 20 वर्ष पूर्व, जब काँग्रेस की सरकार थी, तब था । किंतु पिछले 15 सालों से प्रदेश में रही बीजेपी सरकार ने नियम बदलकर महापौर का सीधा चुनाव करवाने की नीति अपनाई थी ।
काँग्रेस की भूपेश सरकार बनने के बाद अचानक 15 साल वाले नियम को बदलने की चर्चा चल रही थी । इस बीच मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने पहले ही घोषित कर दिया था कि वहाँ महापौर का चुनाव पार्षद ही करेंगे । अब छत्तीसगढ़ में भी वही नियम लागू करने की चर्चा चल निकली और अब यह एक तरह से तय ही है कि आगामी निगम चुनाव में महापौर पार्षद ही चुनेंगे ।
इस नए नियम से अब उन नेताओं की हालत सोचनीय हो गई है जो महापौर का डायरेक्ट चुनाव लड़ने के इच्छुक थे । अब उन्हें पहले वार्ड चुनाव जीतना होगा तभी वे महापौर की दौड़ में शामिल हो सकेंगे ।
काँग्रेस के इस नए नियम से जहाँ पूर्व महापौर प्रमोद दुबे, विकास उपाध्याय जैसे कद्दावर नेताओं को पार्षद चुनाव लड़ना होगा, वहीं बीजेपी के विधानसभा चुनाव हारे राजेश मूढ़ता और श्रीचंद सुंदरानी को भी वार्ड के दंगल में ज़ोर आजमाना होगा । बीजेपी इस नियम का पुरज़ोर तरीके से विरोध कर रही है
अब कुछ घण्टों का इंतज़ार और, जब 15 अक्टूबर को बदले हुए नियम पर मोहर लगेगी ।