भिलाई इस्पात संयंत्र के निजीकरण होगा ? कृष्ण देव सिंह

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भिलाई इस्पात संयंत्र के निजीकरण होगा ? कृष्ण देव सिंह

आज देश की अनेक बड़ी बड़ी सार्वजनिक संस्थायें निजीकरण का शिकार होती जा रही हैं ।

क्या भारत और सोवियत संघ की मित्रता का प्रतीक भिलाई इस्पात संयत्र का निजीकरण होने जा रहा है, यह यक्ष प्रश्न, संयंत्र के कार्मियों के साथ – साथ आम जनता दके जेहन में भी अब उठाने लगा है । आशंका यह है कि अब मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने भी अपनी चिंता और डर सार्वजनिक रुप से व्यक्त कर दी है । संयत्र के निजीकरण की आशंका उस समय से व्यक्त की जाने लगी जब लगातार दुघर्टनायें होने लगी तथा प्रबन्धन व इस्पात मंत्रालय से भी कुछ ऐसे ही संकेत लगातार मिलने लगे है जिसके कारण संयत्र के निजीकरण किये जाने की संभावनाओं को बल मिल रहा है ।

राज्य के मुख्यमंत्री यदि प्रदेश एवं स्थानीय जनता के हित से जुड़े किसी मुद्दे पर चिंता व डर व्यक्त करें तो निश्चित रूप से वह कोई बड़ी और गंभीर चिंताजनक बात है । मुद्दा जब किसी समय छत्तीसगढ़ की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले भिलाई इस्पात संयंत्र से जुड़ा है तो वह और भी अहम माना जाता है ।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पत्रकारों के एक समारोह में ना केवल भिलाई इस्पात संयंत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई वरन संयंत्र को निजी हाथों में सौंपे जाने की सुगबुगाहट पर भी डर जताया था । मुख्यमंत्री के द्वारा डर जैसे शब्दों का उपयोग वास्तव में पूरे प्रदेश के लिए गंभीर चिंता और सोच का विषय है । दिनों-दिन संयत्र पर निजीकरण की गहराती जा रही आशंका में आज जरूरत इस बात की हो गई है कि प्रदेश की सभी राजनीतिक सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन, आम जनता के साथ मिलकर इस पर विचार कर उचित निर्णय ले ।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पदभार ग्रहण के बाद ही, जिस तरह जनहित के मामलों में ताबड़तोड़ निर्णय लेकर राहत पहुंचाने और प्रदेश को विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ाने का प्रयास किया है । पत्रकारों के जिस समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने डर एवं चिंता का सार्वजनिक रूप से इजहार किया था उस समारोह में भिलाई के सभी वर्गों से जुड़े गणमान्य एवं जिम्मेदार माने जाने वाले लोग उपस्थित थे, ऐसे जिम्मेदार कहे जाने वाले बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो बातें कही वे वास्तव में गंभीर एवं सोचनीय है ।

भिलाई इस्पात संयंत्र, मध्य भारत का प्रथम एवं सबसे बड़ा उद्योग रहा है जिसने संपूर्ण छत्तीसगढ़ के औद्योगिक विकास को गति एवं पहचान दी थी, भिलाई को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा औद्योगिक तीर्थ की संज्ञा तक दी गई थी तो इसे संपूर्ण मध्य भारत की आर्थिक रीढ़ भी माना गया था जिसकी वजह से 12 लाख की आबादी वाला पूरा भिलाई शहर ही बसा था । इसका वैभव पूरे देश में आज भी चर्चित है । लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह की स्थिति एवं परिस्थिति निर्मित होती गई एवं केंद्र शासन की नीतियां बनती गई तथा वैश्विक व्यापार उद्योग की कल्पना की गई उसके बाद भिलाई का यह हुआ वैभव भी शनै शनै कम होता गया है। एक समय स्थाई-अस्थाई, ठेकेदारी- दैनिक, कुशल-अकुशल कर्मियों की संख्या इसी भिलाई इस्पात संयंत्र में करीब एक लाख थी जो बीते एक दशक में 25- 30 हजार तक रह गई है । इसका कारण कुछ तो आधुनिकीकरण रहा तो बहुत कुछ निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा भी रही है। भिलाई में एक अलग तरह की संस्कृति एवं चरित्र ने जन्म पाया जो विकास एवं प्रगति के मामले में पूरे देश में सराहा भी गया था, अब जबकि निजीकरण की चर्चा एवं सुगबुगाहट काफी तेज हो चुकी है तब भिलाई की औद्योगिक संस्कृति, रोजगार-आजीविका के साधनों को बचाने की चिंता भी काफी बलवती हो चुकी है । इन्हीं सब बातों को देखते हुए संभवतः प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मन का दर्द उभरकर सामने आ गया है ।मुख्यमंत्री की जनता एवं छत्तीसगढ़ के प्रति हर मामले में संवेदनशीलता पूरी तरह स्पष्ट है ।

यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब चिंता व्यक्त करें तब मुद्दा अहम तो होता ही है लेकिन जब मुखिया डर की बात करें तो इसे और भी गंभीर माना जाएगा । मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भिलाई इस्पात संयंत्र को निजी हाथों में सौंपे जाने की चर्चा एवं अंदरूनी प्रक्रिया पर अपने डर का सार्वजनिक रूप से इज़हार किया है । मुख्यमंत्री के मन का डर किसी एक विषय से जुड़ा नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे राज्य की औद्योगिक प्रगति रोजी-रोटी आर्थिक विकास के अलावा यहां की संस्कृति, सामाजिक समरसता,धार्मिक सौहार्द ,कार्यप्रणाली से पूरी तरह जुड़ा माना जाना चाहिए । इन बातों पर जरा सा भी ऊंच-नीच पूरे प्रदेश को प्रभावित कर सकता है ।

देश के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रम में कुछ हद तक निजीकरण की प्रक्रिया से इसके कुप्रभाव भी सामने आए हैं और जो महारत्न की श्रेणी का उद्योग भिलाई उत्पादन की मिसाल था वह पिछड़ता जा रहा है, दुर्घटनाओं का क्रम लगातार जारी है, मानव संसाधन की कमी से बेरोजगारों में कुंठा और गुस्सा बढ़ता जा रहा है। ऐसी गंभीर स्थिति में अब पूरे छत्तीसगढ़ बिरादरी का दायित्व है कि मुख्यमंत्री की चिंता एवं डर को अपनी चिंता बनाएं और इस डर को दूर करने की दिशा में सार्थक एवं सकारात्मक पहल व चर्चा का दौर प्रारंभ कर निजीकरण को रोके जाने की दिशा में पहल करें ।

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