नई दिल्ली, 27 फ़रवरी 2021, 18.55 hrs : बिना कहे ही बात कह जाना, सियासत की एक यह भी अदा है । सियासतदां कई बार प्रतीकों के जरिए बिना कुछ कहे ही अपनी बात कह जाते हैं । दिल्ली से दूर जम्मू में शनिवार को जब कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह ‘G-23’ ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ एक तरह हुंकार भरी तब उनके शब्दों से कहीं ज्यादा गहरे और मायने वाले उनके प्रतीक थे ।
सब कुछ जैसे संकेतों में था । गांधी ग्लोबल का मंच, नेहरू-गांधी परिवार वाले गांधी नहीं, महात्मा गांधी । बैनर से सोनिया या राहुल गांधी की तस्वीरें नदारद थीं । एक और खास बात यह रही कि सभी के सिर पर भगवा पगड़ी बंधी हुई थी । यह महज संयोग है या फिर प्रतीक ? कांग्रेस के बागी नेताओं के भगवा पगड़ी पहनने से सवाल उठना लाजिमी है ।
क्या है भगवा पगड़ी के मायने?
हिंदुस्तान की सियासत में रंगों का भी अपना ही महत्व है, अपना ही किरदार है । भगवा भले ही राष्ट्रध्वज तिरंगे का भी हिस्सा हो, लेकिन इस रंग को हिंदुत्व से जोड़कर देखा जाता है । वैसे ही जैसे हरे रंग को इस्लाम से। बीजेपी को तो कई बार भगवा पार्टी तक कहा, लिखा जाता रहा है । दूसरी तरफ, कांग्रेस ‘भगवा’ रंग और प्रतीकों से परहेज करती आई है । ऐसे में कांग्रेस के जी-23 के नेताओं की भगवा पगड़ी कई सवाल छोड़ जाती है । मसलन, क्या ये नेता बीजेपी के करीब जा रहे हैं ? वैसे पीएम मोदी ने राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की विदाई के वक्त उनकी तारीफ में जो कसीदे पढ़े थे, सियासी पंडित आज भी उसके मतलब निकालने की कोशिश कर रहे हैं । सवाल यह भी है कि भगवा पगड़ी कहीं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को यह संदेश देने के लिए तो नहीं है कि किसी खास रंग से ‘परहेज’ की छवि से मुक्त होइए ।
सोनिया, राहुल की तस्वीर नदारद, ‘असली कांग्रेस’ होने का दावा
G-23 के नेताओं के इस कार्यक्रम में कहीं भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा की कोई तस्वीर नहीं दिखी । नेताओं के तेवर का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आनंद शर्मा ने कहा कि हम कांग्रेसी हैं कि नहीं, यह तय करने का हक किसी को नहीं है । सवाल यह भी उठ रहा है कि अनुभवी नेताओं ने अनुभव की बात छेड़ कहीं ‘परिवारवाद’ के खिलाफ तेवर तो नहीं जाहिर कर रहे ? पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने अपने संबोधन में कहा, ‘हममें से कोई ऊपर से नहीं आया । खिड़की रोशनदान से नहीं आया । दरवाजे से आए हैं। चलकर आए हैं । छात्र आंदोलन से आए हैं युवक आंदोलन से आए हैं । यह अधिकार मैंने किसी को नहीं दिया कि मेरे जीवन में कोई बताए कि हम कांग्रेसी हैं कि नहीं हैं । यह हक किसी का नहीं है। हम बता सकते हैं कांग्रेस क्या है । हम बनाएंगे कांग्रेस को।’ आनंद शर्मा ने आगे कहा, ‘पिछले 10 सालों में कांग्रेस कमजोर हुई है । दो भाई अलग-अलग मत रखते हों, तो इसका मतलब यह नहीं है कि घर टूट जाएगा । या भाई, भाई का दुश्मन हो जाता है, ऐसा तो नहीं हो जाता है । अगर कोई अपना मत न व्यक्त करे कि उसका कोई क्या मतलब न निकाल ले, फिर वह घर मजबूत नहीं रहता है ।’
आजाद को राज्यसभा में न भेजने की दिखी टीस
जम्मू में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘सच बोलने का मौका है और आज सच ही बोलेंगे । हम क्यों यहां इकट्ठा हुए हैं । सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस पार्टी हमें कमजोर होती दिख रही है । इसलिए हम यहां इकट्ठा हुए हैं । पहले भी इकट्ठा हुए थे। हमें इकट्ठा होकर इसे मजबूत करना है । हम नहीं चाहते थे कि गुलाम नबी आजाद साहब को संसद से आजादी मिले ।’ सिब्बल ने आगे कहा, ‘पूछिए क्यों ? क्यों मैं समझता हूं कि जबसे वह राजनीति में आए कोई ऐसा मंत्रालय नहीं रहा, जिसमें वह मंत्री नहीं रहे । कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसको वह जानते नहीं हैं । टेलिफोन पर जब किसी भी नेता को फोन करते थे, तो उनके यहां आकर बैठक करते थे । मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस अनुभव को कांग्रेस पार्टी इस्तेमाल क्यों नहीं कर पा रही है ।’