हाथरस, 07 अक्टूबर 2020, 13.55 hrs : हाथरस मामले में बड़ा खुलासा हो रहा है । प्रवर्तन निदेशालय की शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक, इस कांड के बहाने जातीय दंगा फैलाने के लिए पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पास मॉरिशस से 50 करोड़ आए थे ।
ईडी ने दावा किया है कि पूरी फंडिंग 100 करोड़ से अधिक रुपये की थी । पूरे मामले की तफ्तीश की जा रही है । गौरतलब है कि हाथरस में दंगे की साजिश रचने के आरोप में मेरठ से चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था । चारों का पीएफआई संगठन से रिश्ता बताया जा रहा था । पुलिस ने इनके पास से भड़काऊ साहित्य बरामद किया था ।
इससे पहले यूपी पुलिस ने एक वेबसाइट के जरिए दंगों की साजिश का दावा भी किया है । हाथरस में हिंसा की साजिश के पहलू पर ईडी ने भी केस दर्ज कर लिया है । ईडी की शुरुआती जांच में खुलासा हुआ है कि यूपी में जातीय हिंसा भड़काने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग की गई थी ।
यूपी सरकार के मुताबिक, प्रदेश में यूपी में जातीय दंगों की साजिश कराकर दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि खराब करने के लिए जस्टिस फार हाथरस नाम से रातों रात वेबसाइट तैयार हुई । वेबसाइट में फर्जी आईडी के जरिए हजारों लोग जोड़े गए । यूपी सरकार का दावा है कि विरोध प्रदर्शन की आड़ में वेबसाइट पर देश और प्रदेश में दंगे कराने और दंगों के बाद बचने का तरीका बताया गया । मदद के बहाने दंगों के लिए फंडिंग की जा रही थी ।
फंडिंग की बदौलत अफवाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया के दुरूपयोग के भी सुराग मिले हैं । जांच एजेंसियों के हाथ वेबसाइट की डिटेल्स और पुख्ता जानकारी लगी है । यूपी सरकार के मुताबिक, वेबसाइट में चेहरे पर मास्क लगाकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को विरोध प्रदर्शन की आड़ में निशाना बनाने की रणनीति बताई गई ।
सोचनीय है कि हाथरस की पीड़ित युवती की इलाज के दौरान मौत और उसके बाद आधी रात को उसका दाहसंस्कार, फिर काँग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों का पुरज़ोर विरोध, विरोध को कुचलने की सरकार द्वारा तमाम कोशिशें, मामले को जातिगत रूप देकर नया मोड़ देने या दबाने की कोशिशों के बावजूद रोक नहीं पाना । और अब अंत में, एकबार फिर, देश मे होने वाले कुछ चुनावों के चलते लोगों की भावनाओं को भड़काने की साज़िश की जा रही है ।
हो सकता है कि जातिगत दंगे फ़ैलाने के लिए फंडिंग की जा रही होगी । पर ये कोई नई बात तो नहीं है ! ये सब तो हमेशा ही होते आ रहा है । अचानक, चुनाव के पहले इस मामले को उजागर करने की बात सन्देहास्पद है । अगर ये सच है तो इस मामले की तह तक पहुंचने के पहले इसे उजागर कर संदेहियों को सतर्क करने का प्रयास ही तो है !