माँ दुर्गा में सबसे पहला नाम शैलपुत्री का है, जो गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं । अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष के यहां कन्या के रूप में उतपन्न हुई थीं । माँ के दाहिने हाथ शूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है । माता की शक्तियां अनन्त हैं ।
नवरात्र के पहले दिन भक्तगण इनकी आराधना करते हैं । एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ करवाया । उसमें सभी देवताओं को बुलाया गया लेकिन क्रोधवश शंकरजी को यज्ञ में नहीं बुलाया । सती को जब पता चला कि पिताजी के यहाँ यज्ञ हो रहा है तो उन्होंने वहाँ पर जाने की इच्छा जाहिर की । शंकर जी के काफी समझाने के बाद भी सती नहीं मानी तो शंकर जी ने उन्हें भेज दिया ।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि परिजनों का उनके प्रति व्यवहार ठीक नहीं है । कोई उनसे ठीक से बात नहीं कर रहा है । यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा । तब उनको भगवान शंकर की याद आई और उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि द्वारा अपने को भस्म कर लिया और सती हो गईं । उसके बाद से इनको सती के नाम से जाना गया ।