जगदलपुर, 20 जुलाई 2020, 14.00 hrs : (बी धर्मेन्द्र महापात्र) पाट जात्रा पूजा पूरे विधि-विधान के साथ विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की शुरुवात हो गई है । इस बार बस्तर का दशहरा 104 दिन का होगा ।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी दशहरे की शुरुआत हरेली अमावस में “पाट जात्रा” की रस्म के साथ किया गया । पिछले 7 सौ सालों से बस्तर में दशहरा पर्व मनाया जा रहा है । विश्व का सबसे लंबा चलने वाला बस्तर का दशहरा कुल 75 दिनों तक चलता है ।
भारत में दशहरे में रावण का पुतला दहन किये जाने की परंपरा है । किंतु बस्तर में रावण के पुतले दहन नहीं किया जाता है । दशहरा पर बस्तर में विशालकाय भव्य रथ संचालन की परम्परा है जो वर्षो से चली आ रही है ।
बस्तर दशहरे की शुरुवात पाठ जात्रा के साथ होती है । आमवस्या में रथ निर्माण के लिए लाई गई पहली लकड़ी, जिसे ठुरलु खोटला भी कहा जाता है, की पूजा अर्चना होती है तथा बलि चढ़ाई जाती है । पाट जात्रा पूजा विधान में झार उमरगांव बेड़ा उमरगांव के कारीगर अपने साथ रथ बनाने के औजार लेकर आते है तथा रथ बनाने की पहली लकड़ी के साथ औजारों की पूजा परंपरानुसार की जाती है । परम्परानुसार मोंगरी मछली एवं बकरे की बली के साथ इस अनुष्ठान को संपन्न कराया जाता है । इसके बाद लगातार कई धर्मिक अनुष्ठान सम्पन्न होते है ।
बस्तर दशहरा 1408 ई से आज तक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिसमें दो मंजिला रथ का संचालन होता है । आस्था और विश्वास की डोर थामे आदिम जनजातियां अपनी आराध्य देवी मॉ दंतेश्वरी के छत्र को सैकड़ों वर्षों से विशालकाय लकड़ी से निर्मित रथ में विराजमान करा रथ को पूरे शहर के परिक्रमा के रूप में खींचते हैं ।
दंतेवाड़ा से प्रत्येक वर्ष माईजी की डोली पर्व में सम्मिलित होने आती है । बस्तर का दशहरा, आदिवासियों की आस्था से जुड़ा पर्व है. इसलिए रथ का संचालन आदिवासी वर्ग के लोग ही करते है । बस्तर की अनोखी परम्परा दशहरा पर्व को विश्व में अपनी अलग पहचान दिलाता है, पर्व को देखने और समझने के लिए देशी । विदेश से पर्यटक यहां प्रतिवर्ष पहुंचते है ।