“संकल्पित संतुलन” संपादकीय, “आदित्य यश” पत्रिका
सत्ता का पैमाना डोलता रहता है । बादशाह वो है जो सत्ता और समाज में संतुलन बना सके । बड़े संयम और पूरे होश-ओ-हवास मे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हर पहल से, अब ये साबित होता आ रहा है कि काँग्रेस के तेवर और उनके पैतरे विपक्षी दल के होश उड़ा देने के लिए काफी हैं । एक पलड़े में जनता का स्नेह और सहानुभूति उन्हे बकायदा मिल रही है । किसानों का क़र्ज़ा माफ से लेकर कर्मचारियों को पेंशन, स्थानीय त्योहारों मे सार्वजनिक अवकाश, स्थानीय संस्कृति, परंपरा, बोली और व्यंजन को पुनर्जीवन देना, भ्रष्ट अधिकारियों पीआर कड़ा रुख और राजनीतिक तथा सामाजिक विकास ने उनकी कसावट और दूरदृष्टि से जहां लोग उनके कल होते जा रहे हैं, वहीं संवेदनशील मुखिया से लोगों की उम्मीदें भी बढ़ती जा रही है ।
अविभाजित मध्यप्रदेश में 1985 में युवा काँग्रेस से अपना राजनीतिक सफ़र शुरू करने से लेकर, नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य के तीसरे मुखिया बने, ओबीसी नेता भूपेश बघेल अपने दबंग और जोशीले तेवरों के चलते काँग्रेस आलाकमान के बेहद करीब होते जा रहे हैं । साढ़े पाँच साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल ने मृतप्राय: हो चुकी काँग्रेस को न सिर्फ जीवित किया, बल्कि तत्कालीन भाजपा सरकार की भीषण प्रताड़णा झेलते हुए जहां जेल जाने से नहीं हिचके, वहीं उनके नेतृत्व में काँग्रेस ने बड़े लम्बे समय बाद अभूतपूर्व बहुमत से सरकार में वापसी भी की ।
छत्तीसगढ़ की जनता को, पिछले 15 वर्षों में, भाजपा शासन की पीड़ा और त्रासदी से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाते हुए, संवेदनशील भूपेश बघेल ने “नरवा, गरुआ, घुरुवा, बाड़ी, छत्तीसगढ़ के चार चिन्हरी” का नारा दिया और प्रदेश की जनता का जीवन बदलने मे पूरा प्रशासन झोंक दिया । “गौठान” निर्माण ने, प्रदेश की विलुपत होती जा रही संस्कृति और परंपरा को नया जीवनदान दिया है ।
अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को भी अपनी सहृदयता और स्नेह से मुरीद बना रहे हैं प्रदेश मुखिया । विपक्षी दल के नेता भी उनके गुणगान करने में नहीं हिचक रहे । और तो और, उनकी स्वयं की काँग्रेस पार्टी के वो नेता और सदस्य जो कभी उनके नेतृत्व को अस्वीकार कर रहे थे, वो भी आज भूपेश बघेल की कार्यप्रणाली से न सिर्फ उत्साहित हैं, बल्कि खुश भी हैं ।
इसी बीच समय-समय पर अफवाहें भी उड़ाई जा रही हैं कि काँग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री चयन के वक्त ये स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में मुख्यमंत्री का कार्यकाल ढाई-ढाई वर्ष का रहेगा । किन्तु संवेदनशीलता और एग्रेशन के बीच तालमेल बना कर चलने वाले भूपेश बघेल कि नीति-रीति, सटीक और दूरदर्शी कार्यप्रणाली से अब कोई बदलाव के संभावना बेहद क्षीण होती जा रही है ।
सत्ता पर बघेल कि पैठ, पकड़ और संतुलन के गज़ब तालमेल है ।