सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बने ।
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा सामाजिक बहिष्कार कर हुक्का पानी बन्द करने की कुरीति का खत्म होना आवश्यक है, इस के लिए एक सक्षम कानून का बनाया जाना भी आवश्यक है सरकार को इस हेतु पहल करनी चाहिए ।
डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि मुंगेली जिले के एक ग्राम घटोलीपारा से सामाजिक बहिष्कार का एक मामला सामने आया है, जिसमे समाज के हुक्मरानों और गांव के दबंगों ने संतन निर्मलकर और उसके परिवार की जिंदगी नरक बना दी है । स्थिति यह है कि दाने-दाने को मोहताज संतन निर्मलकर का परिवार पिछले 2 साल से समाज और गांव से बहिष्कृत होकर अपनों के बीच रहकर भी बेगाने की जिंदगी जीने को मजबूर है । गांव में ना तो कोई उससे बात करता है और ना ही गांव के दुकानदार उन्हें जरूरत का सामान देता है ।
यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि मुंगेली जिले के साकेत चौकी अंतर्गत घटोली पारा निवासी संतन निर्मलकर और उसके परिवार की असल जिंदगी की सच्चाई है, जो अपनों के बीच रहकर भी अपनों से दूर होकर बहिष्कृत का जीवन यापन कर रहा है । संतन निर्मलकर के परिवार पर दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब उसके जवान बेटे की 2 साल पूर्व सड़क दुर्घटना में मौत हो गई । आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं होने की वजह से संतन मृत्युभोज नहीं करा सका था ।
इस पर समाज के एक व्यक्ति की संतन के भाई से बातचीत हुई । बीच-बचाव करने पहुंचे संतन निर्मलकर पर तथाकथित लोग मृत्युभोज नहीं कराने का आरोप लगाते हुए जमकर बरसने लगे । देखते-देखते बातचीत ने विवाद का रूप ले लिया । इसके बाद तथाकथित समाज के हुक्मरानों और गांव के दबंगों ने दण्ड स्वरूप तुगलकी फरमान जारी करते हुए उसे और उसके परिवार को समाज और गांव से बहिष्कृत कर हुक्कापानी ही बंद कर दिया । तब से लेकर आज तक संतन का परिवार बहिष्कार का जीवन जीने को मजबूर है ।
संतन बताते है कि गांव में इस तुगलकी फरमान का असर इस कदर हावी है कि उसे और उसके परिवार वाले से गांव का कोई व्यक्ति ना तो बातचीत करता है और ना ही कोई व्यक्ति उसे गांव में काम देता है । इतना ही नहीं गांव के किराना दुकानदार भी उन्हें और उनके परिवार को समान नहीं देता । बीच में कुछ दुकानदारों और कुछ लोगों ने उनसे बातचीत करने की जरूर कोशिश की । मगर तथाकथित लोगों ने उन्हें भी आर्थिक रूप से दंडित कर दिया । अब उसे रोजी रोटी व जरूरत के सामान के लिए पड़ोसी गांवों पर निर्भर रहना पड़ता है ।
सन्तन का कहना है कि लंबे समय से बहिष्कृत का दंश झेलते झेलते अब उनके और उनके परिवार में सहन शीलता खत्म हो चुकी है। । सन्तन के परिवार वालों का भी कहना है कि न्याय की आस लिए उनके द्वारा प्रशासन एवं पुलिस से भी गुहार लगाई मगर आश्वासन के अलावा हुआ कुछ नहीं । यही वजह है कि अब थक हार कर उनके सामने आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं दिख रहा ।
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा इस मामले पर पुलिस एवं प्रशासन को त्वरित कार्यवाही करनी चाहिए, वही सरकार को सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बनाना चाहिए ताकि प्रदेश के हजारों बहिष्कृत परिवारों को न केवल न्याय मिल सके, बल्कि वे समाज मे सम्मानजनक ढंग से जी सकें ।