आदमी अपनी फिदरत नहीं बदल सकता, यह उसका मौलिक स्वभाव बन जाती है । बिलासपुर में हर साल जनवरी में आयोजित किये जाने वाले राष्ट्रीय व्यापार मेला से हरीश केडिया के इस बार हाथ खींच लेने से यह मेला इस बार आयोजित होगा या नहीं, मसला उहापोह में पड़ गया है ।
यह मेला बिलासपुर की पहचान बन गया है, पांच दिनों तक व्यापार विहार इस मेले से गुलजार रहता, करोड़ो की खरीद फरोख्त होती मनोरंजन तथा विविध स्टाल लगते, प्रतिभाओं को पुरस्कृत किया जाता है । इसकी तैयारियों में उद्योग संघ के सदर हरीश केडिया इन दिनों से सक्रिय हो जाते ।
बात उन दिनों से शुरू कर रहा हूँ जब लखीराम अग्रवाल जी मध्यप्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष रहे । उनसे मिलने और किसी नई खबर के चाहत में बिलासपुर में निवास गया था । उनके पैर में सूजन थी और डंडा ले चल बमुश्किल चलते थे । मुझसे उन्होंने कहा – भोपाल में प्रदेश भाजपा की चुनावी बैठक है, और उनके पुत्र अमर अग्रवाल सहित घर के सब लोग चोट के कारण शामिल होने जाने नहीं दे रहे । मैंने उनकी इस पीड़ा को समझा ।
मैंने कहा – जाने का मन है तो जाना चाहिए, जैसे रामबाबू सन्थोलिया जी, बड़े आयोजनों के आयोजन और शहरी विकास की योजनाओं बिन नहीं रह सकते, हरीश केडिया उद्योग संघ और व्यापार मेले के आयोजन बिना नहीं रह सकते, मैं जंगल और लिखने बगैर तथा, कालीचरण यादव राउत नाच महोत्सव आयोजन के बगैर नहीं रह सकते । ठीक वैसे ही, आप भी दलीय राजनीति बिना नहीं रह सकेंते हैं । फिर मैंने उनके लिए मेडिकल स्टिक ला दी, उन्होंने चलने में राहत महसूस की और ड्राइवर को बुलाकर स्टेशन से छतीसगढ़ एक्सप्रेस से भोपाल प्रस्थित हो गए ।
हरीश जी, आप बुजुर्ग लखीरामजी की इस बात से प्रेरित होएं, और मेले के आयोजन के लिए अपनी सेकेंड लाइन को सक्रिय कीजिये । यह मेला शहर की अस्मिता से जुड़ा है, इससे नए उद्यमियों को रोजगार की राह दिखती है । आप इस राह को बन्द नहीं कर सकते । फिर से विचार कीजिये, मैने सुना है, आप मेले के प्रति उदासीन रुख बनाये है और कोई सुगबुगाहट नहीं हो रही हैं । कोई बाधा नहीं आ सकती कबीर ने लिखा है –
जो है जा को भावना, सो ताहि के पास ।
उद्योग संघ को भी अपनी बड़ी पहचान और परम्परा से वंचित नहीं होना चाहिए।