विशाल यादव, रायपुर। क्या आप जानते हैं कि सत्तर के दशक में एक दशहरा ऐसा भी था, जब रायपुर में ना तो रावण जला, ना ही दशहरा ही मनाया गया । जी हां, यह वर्ष 1970-71 की बात हैb। रायपुर में दशहरे के ठीक पहले एक बड़े धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ । इसमें विभिन्न साधु-संतों समेत कुछ अन्य धर्मगुरु भी एक ही मंच पर एकत्रित हुए थे । इस आयोजन में एक धर्मगुरु ने भगवान राम को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी । फिर क्या था, पूरा शहर विरोध में सड़क पर उतर आया । आमतौर पर शांतिप्रिय रहने वाला रायपुर उस दिन क्रोध में उबल पड़ा ।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक भगवान राम पर की गई टिप्पणी के बाद उक्त रायपुर में तनाव का माहौल हो गया । जिन संत ने टिप्पणी की थी, वे रातोंरात रेल की पटरियों के किनारे चलते हुए रायपुर से बाहर निकले थे । श्रीराम पर की गई टिप्पणी से नाराज दूधाधारी मठ के महंत वैष्णवदास जी ने दशहरा नहीं मनाने का निर्णय किया था इसलिए उस वर्ष विरोध स्वरूप किसी ने भी दशहरा नहीं मनाया ।
पूरी घटना का जिक्र दूधाधारी मठ के स्मृति ग्रंथ में मिलता है । इस ग्रंथ के अनुसार वर्ष 1970-71 में जैन दर्शन के एक आचार्य ने राम कथा को लेकर एक गंभीर टिप्पणी कर दी । इससे आहत वैष्णवदास महाराज ने श्री स्वामी करपात्री जी को रायपुर आमंत्रित कर गांधी चौक में एक विशाल धर्मसभा का आयोजन किया । इस सभा में करपात्री जी महाराज ने वाल्मीकि रामायण के विरुद्ध विचार को स्थापित करने के लिए परस्पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी, लेकिन कोई भी रामायण के विरुद्ध शास्त्रार्थ करने उपस्थित नहीं हुआ । श्रीदूधाधारी मठ के महंत वैष्णवदास जी के इस साहस से पूरे रायपुर ने उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की और उनके आह्वान पर उस वर्ष विरोध स्वरूप दशहरा नहीं मनाया गया । आज भी रायपुर में उस घटना के कई प्रत्यक्षदर्शी मौजूद हैं ।