“अटकन बटकन दही चटाका, लऊहा लाटा बन में कांटा…..”
राम भगवान थे या ऐतिहासिक पात्र या फिर काल्पनिक पात्र, उनकी जन्मस्थली कहां है, इन सारी बहसों और विवादों से परे, राम हम छत्तीसगढिय़ों के लिए सांस्कृतिक पुरुष हैं । छत्तीसगढिय़ों के अंतस में समाहित है राम । हमारी जीवनशैली में राम इस कदर घुले-मिले हैं कि हमारी सामाजिक दिनचर्या की शुरुआत ही उनके नाम से होती है, जब हम किसी का अभिवादन करने के लिए राम-राम कहते हैं ।
मुझे खुशी हुई कि हमारे प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल जी भी इस छत्तीसगढ़ी मूल्य को समझते हैं । दरअसल शहीद स्मारक भवन रायपुर में 4 अक्टूबर, शुक्रवार से तीन दिवसीय रामलीला का आयोजन किया गया था । ‘हमर राम सांस्कृतिक समिति’ द्वारा आयोजित इस रामलीला को ‘कौशिल्या के राम’ नाम दिया गया ।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे । कार्यक्रम जितना अच्छा था, उतना ही जानदार और शानदार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का उद्बोधन था । जब मुख्यमंत्री बोल रहे थे तब दर्शक/श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातों को सुन रहे थे । ‘इसे ही अंग्रेजी में शायद पीन ड्राप सायलेंस कहते हैं ‘!
भूपेश बघेल जी ने बताया कि छत्तीसगढिय़ों के जनजीवन में राम व्याप्त है, हमारी संस्कृति से राम जुड़ा हुआ है । उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में जब दो लोग मिलते हैं तो राम-राम कहकर एक-दूसरे का अभिवादन कर बातचीत की शुरुआत करते हैं । छत्तीसगढ में धान को जब काठा से नापते हैं तो पहले काठा को राम कहते हैं फिर दो, तीन और चार शुरू होता है और 19 के बाद खण्डी हो जाता है । इसी तरह उन्होंने राम से जुड़ी अनेक बाते बताईं ।
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ी में एक गीत है – “अटकन बटकन दही चटाका, लऊहा लाटा बन में कांटा…”। इस गीत को उन्होंने पूरा बोलकर भी सुनाया । अधिकांश लोग इस गीत का अर्थ नहीं जानते । भूपेश बघेल जी ने बताया कि रामचन्द्र जी छत्तीसगढ़ में 10 वर्ष बिताए हैं । जंगल में वे किस तरह भटके, जीवन कांटों की तरह बीता, सीता जी के विछोह में किस तरह परेशान रहे, इन सब बातों को इस गीत से जोड़कर बताया । इसी तरह छत्तीसगढ़ में भांजे का पैर छूकर प्रणाम किया जाता है । इसका कारण उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ रामचन्द्र जी का ननिहाल है । हम बहन के बेटे को भांजा कहते हैं । यह रिश्ता कौशिल्या और राम से जुड़ा हुआ है । इसीलिए हम अपने भांजे के पैर छूते हैं और प्रणाम करते हैं । लोग मंत्रमुग्ध होकर आश्चर्य कर रहे थे ।
गोकुल सोनी, फोटोग्राफर, नवभारत प्रेस, रायपुर