नई दिल्ली : अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट, ट्रेन हो जाएंगे हवाई दरों के अनुसार । केंद्र सरकार चुपचाप रेलवे का निजीकरण कर दिया है । किंतु इस निजीकरण पर अभी बहुत सी बातें स्पष्ट नहीं हैं ।
* क्या ट्रैन के इंजिन और डब्बे भी प्राइवेट होंगे ? या वो केंद्र सरकार की मलकीयत होगी ?
* क्या वो फैक्टरियां, जहां रेल के कोच और इंजिन बनते हैं, वो भी प्राइवेट होंगे ? या ये सरकार की सम्पत्ति होगी ?
* पटरियां भी क्या प्राइवेट हाथों में जाएगी या सरकार के पास रहेगी ?
* स्टेशन का रखरखाव भी क्या प्राइवेट हाथों में जायेगा या सरकार के पास रहेगा ?
* टिकटिंग, सिग्नल्लिंग, इत्यादि भी क्या सब प्राइवेट हाथों में जायेगे या सरकार के पास रहेंगे ?
‘तेजस ट्रेन’ पर एक एक्सपेरिमेंट किया गया जिसमें केटरिंग वगैरह प्राइवेट हाथों में दी गई थी । वो भी कामयाब नहीं हुई । सिर्फ़ लड़कियां चुनकर, उनको एयरहोस्टेस जैसे कपड़े पहनाकर और अन्य मैनरिज्म सिखाकर यदि सोचें कि गाड़ी प्राइवेट हो गई, तो कम से कम तेजस में तो यह निजीकरण कामयाब नहीं हुआ ।
जनता के पैसे से जो भी सम्पत्तियां बनी हैं, चाहे वो फैक्टरियां हों, कोच, इंजन या पटरियां बनाने की फैक्ट्री हों, रेलवे स्टेशन हो, रेलवे से लगी इतनी सारी ज़मीन हों । ये सब हम टैक्स पैर के पैसों से बनीं हैं । अगर इसे बेचना है तो ध्यान हटाने के लिए जो कुछ चल रहा है, वो तो वैसे ही चल रहा है !
वैसे दुनियां की मिसाल लें तो जिन देशों ने रेलवे का निजीकरण किया उन्हें बाद में वापस लेना ही पड़ा । ब्रिटेन, अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड की सरकारों ने प्राइवेट हाथों से, रेलवे को वापस अपने हाथों में ले लिया है । ऑस्ट्रेलिया में भी जब “give our track back” का नारा गुंजा तो सरकार ने रेलवे को वापस अपने हाथों में ले लिया ।
मन जाता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पब्लिक ट्रांसपोर्ट रियायती दरों पर होने चाहिये । ये लोगों में बराबरी की ऊर्जा पैदा करती है । लेकिन हमारी सरकार का ध्यान शिक्षा को भी प्राइवेट हाथों में सौपने का है । एक-एक करके विश्वविद्यालयों की जो हालात कर रहे हैं, वो हमारे सामने हैं ।
रेलवे निजीकरण ऐसे रूट्स पर होंगे जो ज़्यादा फायदेमंद हैं । इन रूट्स में प्राइवेट ट्रैन आने के 15 मिनट पहले और 15 मिनट बाद तक, इंडियन रेलवे की गाड़ियां नहीं चलेगी । ये फैसला, चुपचाप, कल ही हो भी गया है । सरकार ने हमारा ध्यान एक ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर उलझा दिया है, जिसका आने वाले कई सालों तक हम पर पड़ेगा । लेकिन ऐसे फैसले चुपचाप होते जा रहे हैं, जिन पर हमारा ध्यान नहीं जा रहा । हमें सब तरफ से चौकस रहने की ज़रूरत है ।
वैसे, यह भी कहा जा रहा है कि यह अफवाह मात्र है । पर क्या ये सम्भव है कि विनोद दुआ जैसे मीडिया पर्सन किसी अफवाह फैलाने वाली ख़बर पर वक्त ज़ाया करेंगे । कुछ तो सच्चाई है ।