छत्तीसगढ़ सरकार को आरक्षण मामले में हाइकोर्ट से झटका मिला है । छत्तीसगढ़ के पिछड़ा वर्ग आरक्षण का दायरा 27% किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया है ।
जनसंख्या आधारित आरक्षण और गरीब सवर्ण आरक्षण के बाद राज्य में 82% आरक्षण हो गया था, जिसके खिलाफ हाई कोर्ट बिलासपुर में जनहित याचिका दाखिल की गई थी । चीफ जस्टिस पी आर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी पी साहू की संयुक्त बैंच ने इस मसले पर दायर याचिका की सुनवाई की थी ।
इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला एवं अन्य द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि, इंदिरा साहनी प्रकरण में यह व्यवस्था दी गई थी कि किसी भी सूरत में आरक्षण पचास प्रतिशत से अधिक नही हो सकता ।
छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग के लिए बढ़ाये गए 27% आरक्षण के खिलाफ लोगों ने हाइकोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिका पर शुक्रवार को हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया है । याचिकाकर्ताओं ने तर्क प्रस्तुत किया है कि इंदिरा साहनी प्रकरण के आधार पर किसी भी हालत में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं दिया जा सकता ।
आरक्षण को लेकर हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार को बड़ा झटका लगा हैन। मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि माननीय न्यायालय ने 69% आरक्षण को स्वीकार कर लिया है । यानी एससी और आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के आरक्षण को स्वीकार कर लिया गया है ।
इस संदर्भ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि ओबीसी के आरक्षण को स्वीकार नहीं किया गया है । इससे लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है । हम लड़ाई लड़ेंगे । न्यायालय में पिछड़ा वर्ग के विषय मे हम अपना पक्ष रखेंगे और जीत हमारी ही होगी।