अब डर रहे हैं ना… कोरोना वायरस से …? ये “डर” बहुत ज़रूरी है…

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रायपुर, 17 सितंबर 2020, 17.20 hrs : आज हमारी ज़िंदगी किस मुक़ाम पर है ? 5/6 माह बीत गए तब हम “डर” रहे हैं ! ये “डर”  पहले नहीं था, इसीलिए तो बढ़ती जा रही है महामारी । Over confidence में लोग इस वायरस को हल्के ले रहे थे । सोच रहे थे कि कोरोना हमारा क्या बिगाड़ लेगा ?

पर जहाँ महामारी ने अपना रौद्र रूप दिखाया, तो अब सब डरने लगे हैं । सब जानते हैं कि इस महामारी की अभी कोई दवा नहीं है, इलाज नहीं है । खुद ही, अपने को और अपने परिवार को बचाना है ।

सरकारें, ऐसे कठिन समय मे क्या और कितना कुछ कर पायेगी ? उनके बताये हुए उपायों को ना मानें, और उम्मीद करें कि सरकार कुछ करे ! क्या सरकार के पास जादू की छड़ी है ? सरकारी खजाने कितना भी भरा हो, पर जब इलाज ही नहीं है तो ये पैसे, सोना-चांदी किस काम के ? सरकारें बार बार निवेदन कर रही हैं, समझा रही हैं कि बिना बहुत ज़रूरी काम के, घर से निकलने को बार बार मना तो कर रहे हैं, समझा रहे हैं । फिर मानते या समझते क्यों नहीं ?

एक साल, घर मे शादी ना हो, जन्मदिन ना मनायें, सामाजिक या धार्मिक आयोजनों में ना जाएं, इस तरह का कोई आयोजन हो तो, चाहे कोई कितना भी क़रीबी हो, बुलावे पर भी ना जायें । ऐसे समय में कोई बुरा नहीं मानेगा । यदि कुछ महीने, कुछ साल ये सब आयोजन ना हों तो कौन सी “महाभारत” अशुद्ध हो जाएगा ?

और यदि ऐसे किसी आयोजन में, जो भी बुलाता है वो खुद के साथ साथ आपका और समाज का भी अपराधी है ।
**समझ लीजिये की ये बहुत बड़ा अपराध है, सामाजिक अपराध ।**

कोरोना वायरस किसी की सामाजिक, राजनीतिक साख, वर्ग या उम्र नहीं देख रहा है । सबको अपनी चपेट में ले रहा है । मैंने खुद अपने अनेक करीबी परिचितों को कोरोना की भेंट चढ़ते देखा है । आपके भी तो कई, विदा हुए होंगे । खुद को बचाइये ।

आपके बुलावे पर यदि कोई आ जाता है, और भगवान ना करें, उसे कुछ हो जाता है तो ज़िम्मेदार कौन होगा ?

यदि अब भी ना समझे तो… भगवान के घर चलें…? बुला तो रहे हैं धीरे, धीरे…

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