पाश्चात्य वाद्य सेक्सोफोने से भारतीय संगीत का आनंद

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2 सित्ंबर को रायपुर के संगीत प्रेमियों ने पाश्चात्य वाद्य सेक्सोफोने से हिन्दी फिल्मी संगीत का आनंद उठाया । समय था “अपना मोर्चा डॉट कॉम” और संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम का । इस अवसर पर सेक्सोफोनिस्ट विजेंद्र धवनकर, लीलेश कुमार और सुनील अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया ।

बेलजियम के रहने वाले एडॉल्फ सैक्स म्यूजीशियन और इंस्टूमेंट डिजाइनर थे । एडॉल्फ तब लोकप्रिय हुए जब उन्होंने सेक्सोफोन का अविष्कार किया. यह वाद्ययंत्र जितना विदेश में लोकप्रिय हुआ उतना ही भारत में भी मशहूर हुआ. किसी समय तो इस वाद्ययंत्र की लहरियां हिंदी फिल्म के हर दूसरे गाने में सुनाई देती थीं, लेकिन सिथेंसाइजर व अन्य इलेक्ट्रानिक वाद्ययंत्रों की धमक के चलते इस वाद्ययंत्र का महत्व धीरे-धीरे घट गया. अब भी सेक्सोफोन को एक अनिवार्य वाद्य यंत्र मानने वाले लोग मौजूद है । संगीत के जानकार, यह मानते हैं कि दर्द और विषाद से भरे अंधेरे समय को चीरने के लिए सेक्सोफोन और उसकी धुन का होना बेहद आवश्यक है ।

आज की शाम सागीत प्रेमियों ने सेक्सोफोने का भरपूर आनंद उठाया । इस अवसर पीआर फिल्म समीक्षक अनिल चौबे ने बताया की कैसे मनोहारी सिंह ने लंबे समय तक सेक्सोफोन का सुरीला उपयोग हिन्दी फिल्मों मे किया । मनोहारी सिंह जी ने फिल्म गाइड के गाने ‘तेरे मेरे सपने, अब एक रंग हैं’ मे सेक्सोफोने का भूत ही सुंदर उपयोग किया । इसी तरह फिल्म तीसरी मंज़िल का गाना ‘तुमने मुझे देखा होकर मेहरबा’ आज भी सेक्सोफोने की उत्क्राष्ट प्र्स्तुती है । फिल्म “रक्की” डीके एक्सएचआर ‘क्या यही प्यार है’ मे भी सेक्सोफोने का भूत ही सुंदर उपयोग किया गया है । मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन और उनके पुत्र राहुलदेव बर्मन (पंचम) अक्सर अपने संगीत मे सेक्सोफोने का उपयोग करते थे ।

सेक्सोफोने से निकली धुन से निकले कुछ अन्य गीत, जैसे ‘बेदर्दी बालमां तुझको, मेरा मन याद करता है’, ‘है दुनिया उसकी जमाना उसी का’, ‘गाता रहे मेरा दिल’, ‘हंसिनी ओ हंसिनी’ … सहित सैकड़ों गाने आज भी इसलिए गूंज रहे हैं क्योंकि इनमें किसी सेक्सोफोनिस्ट ने अपनी सांसे रख छोड़ी है.

सेक्सोफोने की सुरीली संध्या के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी होंगे. जबकि प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी और संस्कृति विभाग के संचालक अनिल साहू विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे । सेक्सोफोन पर आधारित एक कहानी साज-नासाज के जरिए अपनी देशव्यापी पहचान कायम करने वाले कथाकार मनोज रुपड़ा भी अपने अनुभव शेयर किए ।

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