भोपाल, 10 मार्च 2020, 10.15 hrs : मध्यप्रदेश की राजनीति के भूचाल में उस वक़्त ठहराव आ गया जब पार्टी आलाकमान ने सिंधिया की ज़िद के आगे समर्पण करते हुए उन्हें मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया ।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से मध्यप्रदेश में काँग्रेस सरकार पर तलवार लटकी हुई थी जब बीजेपी ने होरसट्रडिंग करते हुए काँग्रेस, बीएसपी और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन की बात करते हुए कमलनाथ की सरकार गिरने की कोशिश शुरू कर दी । कमलनाथ भी कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं । उन्होंने बता दिया कि उनकी जेब मे बीजेपी के 8 विधयकों का इस्तीफा पड़ा हुआ है । इससे बीजेपी तो चुप बैठ गई पर सिंधिया को, लम्बे समय से चल रहे विरोध को मुखर करने का मौका मिल गया ।
सिंधिया ने अपने समर्थक 19 विधयकों को अंडरग्राउंड कर बेंगलुरु शिफ्ट कर दिया । सिंधिया, आलाकमान को बहुत समय से समझने की कोशिश में लगे थे कि मध्यप्रदेश में जो सरकार काँग्रेस की बनी है उसमे उन्होंने भी अपना राजपाट छोड़कर कर सड़क पर उतरकर पसीना बहाया है । इसलिए कमलनाथ से ज़्यादा, वो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं । पर पार्टी आलाकमान ने उनकी दावेदारी को अनदेखा और अनसुना कर दिया, जिससे वे और उनके समर्थकों में भारी आक्रोश था । और उसी का नतीजा है कि मध्यप्रदेश में काँग्रेस की कमलनाथ सरकार खतरे में थी ।
सिंधिया के दमदार विरोध और सरकार पर खतरे को भांपते हुए अंततः आलाकमान सोनिया गांधी ने सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने पर अपनी सहमति दे ही दी ।
इस सहमति के पीछे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का हाथ भी माना जा रहा है जो कल रात 11 बजे के बाद, अचानक 10 जनपद, सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे । सूत्र बताते हैं कि राहुल ने अपने मित्र सिंधिया की पैरवी सोनिया गांधी से की और कहा कि अब सत्ता युवा नेतृत्व को सौंपना चाहिये, जिसे सोनिया गांधी ने बहुत चिंतन मनन करने के बाद स्वीकार कर लिया ।
अब देखना होगा कि राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले, वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमलन इस स्तिथी का सामना कैसे करते हैं । वैसे, कुछ भी हो, अंततः पार्टी और सरकार की परेशानी को कुछ दिनों के लिए विराम तो लग गया और आज सब ख़ुशी ख़ुशी होली के रंग में डूबे रहेंगे ।
(हो.स.)😊😊